कुदरत ने हमारे देश को जो अनेक नियामते दी हैं , उनमें से एक है , ' नीम का वृक्ष' ! गाँव और शहरों में अनेक लोग इसकी टहनियों का प्रयोग दातुन बनाकर दाँत साफ करने में करते है या इसकी पत्तियो का प्रयोग खद्यानों को कीड़ो से बचाने के लिए करते है !
नीम के तेल का इस्तेमाल मुख्यत: साबुन बनाने में किया जाता है ! यह तेल इसके बीजों से निकाला जाता है ! नीम के तेल निकालने के बाद बचा पदार्थ नीम की खली कहलाता है ! जिसके अनेक उपाय है !
गर्मी के मौसम में नीम फलता फूलता है ! इस पर फूल आते हैं आसपास महक उठता है ! इसके बाद फल भी आते हैं , जो अंगूर के दाने के बराबर तनिक लम्बा गोल सक्ल का होता है जिसे ' निबोली ' कहते है ! कच्ची निबोलियां हरे रंग की होती है ! चखने में कड़वी होती है ! पकने पर वह पीले हो जाती है और स्वाद मीठा हो जाता है ! निबोली की गुठली से मींग निकलती है और उसे कोल्हू मे पेल कर तेल निकाला जाता है ! जो नीम का तेल कहलाता है !
नीम के कुछ पेड़ो से ताड़ और खजूर की तरह तनिक मिठास लिए पानी निकलने लगता है ! इसे नीम का मद कहा जाता है !
नीम के कुछ अंग कड़वे होते हैं ! परन्तु नीम चखने में जितना कड़वा है , लाभ की दृष्टि से उतना ही मीठा ! इसके सारे अंग पत्ते , फूल, फल , और छाल दवा के तौर फर इसत्तेमाल होते है ! यहाँ तक की इसकी छाया भी स्वस्थयवर्धक है ! इसी लिए गाँव में लोग इसकी छाया मेम विश्राम करते है ! इसकी दातुन से मुँह की गन्दगी को दूर करना , दाँतो को साफ तथा किड़ो से बचाना है !
नीम के पत्ते खून साफ करते है ! अलग अलग राज्यों इसके अलग नाम है ! हिन्दी में इसे नीम , पंजाबी में निमूरी , गुजराती में मीमड़ो , मद्रासी में कडूनिंम , बंगाली में निम तथा तेलगू में बविना ते है !
आयुर्वेद की दृष्टि से नीम तिक्त
, शीत, वीर्य वर्धक और स्वाद विपाक में कड़वा है ! तिक्त होने से - कफ और पित्त का शमन करता है ! सेचन ग्राही (मलभेदन) हमिघ्न और यकृतोत्तेजक है ! तिक्तरस होने के कारण यह रक्त को शुद्ध करता है ! तथा रक्त विकार जन्म शोथ को दूर करता है !
इसके पत्ते एवं छाल जन्तुघ्न , ब्रषापाचन, घाव को शुद्ध करने वाला पूतिहर , दाहप्रशन एवं खुजली नाशक हैं! इसके बीजो का तेल , घाव भरने वाला , कुष्ठ में उपयोगी है ! यह बल को बढ़ाता है ! आयुर्वेद तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में नीम के विविध प्रयोग बताए गए हैं ! घरेलू चिकित्सा में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है !
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