मानसून शब्द मूल रूप से अरबी भाषा के मौसिम से बना है, जिसका मतलब मौसम से हैं। मानसून शब्द का प्रयाग सबसे पले अरब सागर में चलने वाली उन हवाओं के लिए किया गया था, जो गर्मी में दक्षिण - पश्चिमी से और सर्दी में उत्तर पूर्व की ओर चलती है। इसके बाद संसार में उन सभी भागों की हवाओं को मानसून कहा जाने लगा, जिनकी दिशा में ऋतुवत बदलाव हो जाता है। मानसून का मतलब मौसम के मुताबिक हवाओं में होने वाला बदलाव है, जिसकी वजह से बरसात में भी बदलाव आता है। इस तरह मानसून धरातल पर चलने वाली वे हवाएं हैं , जो गर्मी और सर्दी की ऋतुओं को प्रवाह की दिशा बदल लेती है। हवाओं की दिशा बदलने की वजह वायुदाब में होने वाला बदलाव है और वायुदाब में बदलाव तापमान के बदलाव के साथ होता है। वायुदाब और तापमान में गहरा संबंध है । ताप बढ़ने पर वायु का आयतन बढ़ता है और यह फैलकर हल्का हो जाता है। इससे उसका दाब कम हो जाता है।
इसके विपरीत तापमान कम होने से वायु सघन हो जाती है और उसका दबाव बढ़ जाता है। पवनें हमेशा ज्यादा वायुदाब से कम वायुदाब की ओर प्रभावित होती है। यही संतुलन हमारे यहां ग्रीष्मकालीन मानसून लाने में बड़ी भूमिका अदा करता है। 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है और 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है और 21 जून को यह कर्क रेखा पर लंबवत् होता है। इस दौरान बहुत ज्यादा सूर्यातप की वजह से एशिया में बैकाल झील और उत्तर - पश्चिमी पाकिस्तान में न्यून वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाते हैं। इसके विपरीत दक्षिणी हिन्द महासागर और उत्तर - पश्चिमी आॅस्ट्रेलिया के पास व जापान के दक्षिण में प्रशांत महासागर में उच्च दाब केन्द्र विकसित होते है। महासागरों में स्थित उच्च दाब केन्द्रों से स्थलीय निम्न दाब केन्द्र की ओर पवन चलने लगती है, जो आर्द्र होने के कारण वर्षा कराती है। इसके बाद 23 सितंबर से सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लंबवत चमकता है, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में पश्चिमी पाकिस्तान के पास उच्च दाब केन्द्र विकसित होते है। इस वजह से पवनें स्थल से सागर की ओर चलने लगती है। शुष्क होने के कारण ये वर्षा नहीं करा पाती । मध्य आंक्षाशों में चक्रवाती तूफान जाड़े के मानसून में कई बाधाएं खड़ी कर देते है । इन तूफानों के कारण कुछ वर्षा हो जाती है।
इसके अलावा स्थल और जल के मध्य दैनिक तापमान की विषमता छोटे स्तर पर दैनिक मानसून उत्पन्न करती है, जिसे स्थल और समुद्र समीर कहा जाता है। सुबह व रात में ठंडी हवा स्थल से समुद्र की ओर चलती है। दिन में गर्मी के कारण स्थल ज्यादा गर्म हो जाता है , जिससे हवा गर्म हो जाती है व वायुदाब कम हो जाता है। इसकी वजह से हवा समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती है। ये हवाएं तटीय क्षेत्र को आरामदायक बना देती है। व्यापक अर्थ में मानसून उस पवन को कहते हैं जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु विशेष में अधिकांश वर्षा कराती है। इस दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र जैसे - उत्तरी अमेरिका , दक्षिणी अमेरिका , सब - सहारा अफ्रीका, आॅस्ट्रेलिया और पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है।
भारत में मानसून
भारतीय संदर्भ में मानसून एक मौसमी पवन है, जो दक्षिणी एशिया में लगभग चार माह (जून से सितम्बर) तक सक्रिय रहती है। ये हिन्द महासागर और अरब सागर की तरफ से भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर आने वाली हवाएं हैं जो भारत, पाकिस्तान , बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा कराती है। आर्द्रता से लदी इन पवनों के साथ ही बादलों का प्रचंड गर्जन और बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे मानसून ‘फटना‘ या ‘टूटना‘ कहा जाता है। भारतीय मौसम विभाग की परिभाषा के अनुसार वर्षा का दिन वह होता है जब किसी स्थान विशेष पर इसकी मात्रा 24 घंटे में 2.5 सेमी से ऊपर हो। भारतीय अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक प्रभाव मानसून डालता है। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और यहां के कुल फसल क्षेत्र का 4/5 भाग सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर है। दक्षिण भारत की अनेक नदियां , जो अनेक आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र है, वर्षा से ही जल प्राप्त करती है। मानसून के शीघ्र या देर से आने से यहां की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। वार्षिक वर्षा का अधिकांश भाग दक्षिण - पश्चिमी मानसून से ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त होता है। इसके अलावा शीतकाल में शीतोष्ण चक्रवातों द्वारा गंगा के मैदानों में व ग्रीष्मकाल में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों द्वारा तटीय क्षेत्रों में वर्षा होती है।
दक्षिण - पश्चिमी मानसून
भारत में ज्यादातर बरसात इसी मानसून की वजह से होती है। यहां गर्मी की ऋतु के बाद वर्षा ऋतु का आगमन दक्षिण - पश्चिमी मानसून के साथ होता है। तकरीबन पूरे भारत में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों में अधिकतर बरसात होती है और इस अवधि की लगभग 75 - 80 फीसदी बरसात इन्ही पवनों की वजह से होती है। गर्मियों में उत्तर - पश्चिमी मैदानी भागों में तापमान बढ़ने की वजह से वायुदाब कम हो जाता है। जून की जबरदस्त गर्मी की वजह से यहां का वायुदाब इतना कम हो जाता है कि दक्षिणी गोलार्द्ध की दक्षिणी - पूर्वी सन्मार्गी हवाएं भूमध्य रेखा को पार कर भारत के निम्न वायुदाब की ओर चली आती है। दक्षिणी गोलार्द्ध की दक्षिण - पूर्वी पवनें समुद्र में पैदा होती है। हिन्द महासागर में विषुवत वृत्त को पार कर ये पवनें बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में आ जाती है और यहां आने के बाद भारत के वायु संचरण का अंग बन जाती है। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने की वजह से ये बड़ी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती है और विषुवत वृत्त पार करते ही दक्षिण - पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। यही वजह है कि इन्हें दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनें ले लेती है। इन पवनों की औसत गति 30 किमी प्रतिघन्टा होती है। उत्तर - पश्चिमी भागों को छोड़कर ये तकरीबन एक महीने में पूरे भारत में फैल जाती है।
अरब सागर का मानसून
विषुवत रेखा के दक्षिण से आने वाली स्थायी पवनें मानसून के रूप में अरब सागर की ओर आगे बढ़कर सबसे पहले पश्चिमी घाट के पहाड़ से टकराती है। इस कारण सहयाद्रि या पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर भारी बरसात होती हैं। पश्चिमी घाट के पर्वत को पार करते समय इनकी आर्द्रता कम हो जाती है। यही वजह है कि दक्कन के पठार और मध्यप्रदेश में कम वर्षा होती है। यह क्षेत्र वृष्टिछाया के दायरे में आ जाता है। इस मानसून की शाखा का दूसरा भाग सौराष्ट्र के प्रायद्वीप और कच्छ से हो कर पश्चिमी राजस्थान और अरावली की श्रेणियों के ऊपर से गुजरती है। यहां इनसे बहुत कम बरसात होती है। इसके बाद पंजाब और हरियाणा में पहंुचकर यह शाखा बंगाल की खाड़ी के मानसून में मिल जाती है। आपस में एक - दूसरे से शक्ति पाकर ये दोनों शाखाएं हिमालय के पश्चिमी भागों में वर्षा करती है।
बंगाल की खाड़ी का मानसून
दक्षिण - पश्चिमी मानसून की यह शाखा भूमध्य रेखा को पार कर भारत में पूरब की ओर से दाखिल होती है। यह शाखा म्यांमार के तट की ओर व बांग्लादेश के दक्षिण - पूर्वी भागों के तट की ओर बढ़ती है, लेकिन म्यांमार के तट पर फैली अराकन पहाड़ियां इस शाखा के एक बड़े भाग को भारतीय उपमहाद्वीप की दिशा में मोड़ देती है। यही वजह है कि पं. बंगाल व बांग्लादेश में ये पवनें दक्षिण दिशा की बजाय दक्षिण व दक्षिण - पूर्वी दिशाओं से आती है। इसके बाद विशाल हिमालय व उत्तर - पश्चिमी भारत के कम वायुदाब की वजह से यह शाखा दो भागों में बंट जाती है। एक पश्चिमी की ओर बढ़कर गंगाा के मैदान तक पहुंचती है और दूसरी शाखा उत्तर व उत्तर - पूरब में ब्रह्मपुत्र घाटी की ओर जाती है। इस वजह से उत्तर - पूर्वी भारत में भारी बरसात होती है। इसकी एक छोटी शाखा मेघालय में गारों और खासी की पहाड़ियों से टकराती है। इन पहाड़ियों के दक्षिणी भाग में चेरापूंजी स्थित है। चेरापूंजी और मासिनराम विश्व में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है और इसकी वजह इसकी आकृति वाली घाटी के शीर्ष पर स्थिति होना तथा स्थलाकृति की दृष्टि से अनोखी स्थिति होना है।