रविवार, 9 जून 2024

मौत से ठन गयी - अटल बिहारी वाजपेयी जी

 ठन गई !

मौत से ठन गई !

झुझने का कोई इरादा न था , 

मोड पर मिलेगे इसका वादा न था 

रास्ता रोक कर वो खड़ी हो गई ,

यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गयी 

मौत की उमर क्या है ? दो पल भी नहीं ,

जिंदगी सिलसिला, आजकल की नही 

मैं जी भर जिया , मैं मन से मरूँ ,

लौटकर आऊँगा , कूच से क्यूँ डरु ?

तू दबे पाओं, चोरी छिपे से ना आ 

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

अपनों से बाक़ी है कोई गिला

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई,

मौत से ठन गई।

......... अटल बिहारी जी



श्री माधवराव गोलवलकर ( गुरुजी )

 *******श्री गुरु जी *******

                  (5 जून,1973/ पुण्य-तिथि)

                  संघ के संस्थापक परम् पूजनीय डा. हेडगेवार जी ने अपने देहान्त से पूर्व जिनके समर्थ कन्धों पर संघ का भार सौंपा, वे थे श्री माधवराव गोलवलकर, जिन्हें सब प्रेम से श्री गुरुजी कहकर पुकारते हैं। आज उनकी 48 वीं पुण्य-तिथि है|

                  श्रीगुरुजी का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर में अपने मामा के घर हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि.मी. दूर रामटेक में अध्यापक थे।

                    माधव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। कक्षा में हर प्रश्न का उत्तर वे सबसे पहले दे देते थे। अतः उन पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जब कोई अन्य छात्र उत्तर नहीं दे पायेगा, तब ही वह बोलेंगे |

                  उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा पर जाने लगे। जब डा. हेडगेवार जी काशी आये, तो उनसे वार्तालाप में माधव का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। एम-एस.सी. करने के बाद वे शोधकार्य के लिए मद्रास गये; पर वहाँ का मौसम अनुकूल न आने के कारण वे काशी विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक बन गये। 

                   उनके मधुर व्यवहार तथा पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण सब उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे और फिर तो यही नाम उनकी पहचान बन गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। कुछ समय काशी रहकर वे नागपुर आ गये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहाँ उन्होंने विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली। 

                  स्वामी जी के देहान्त के बाद वे नागपुर लौट आये तथा फिर पूरी शक्ति से संघ कार्य में लग गये। उनकी योग्यता देखकर डा. हेडगेवार जी ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया। अब पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा। 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति देने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। 

                     1947 में देश आजाद हुआ; पर उसे विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। 1948 में गांधी जी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। श्री गुरुजी को जेल में डाल दिया गया; पर उन्होंने धैर्य से सब समस्याओं को झेला और संघ तथा देश को सही दिशा दी। इससे सब ओर उनकी ख्याति फैल गयी। संघ-कार्य भी देश के हर जिले में पहुँच गया।

                  श्री गुरुजी का धर्मग्रन्थों एवं हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था; पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। 1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गये। शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ; पर पूरी तरह नहीं। इसके बाद भी वे प्रवास करते रहे; पर शरीर का अपना कुछ धर्म होता है। उसे निभाते हुए श्री गुरुजी ने 5 जून,1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया।

                  श्रीगुरुजी, अपनी विचार शक्ति व कार्यशक्ति से विभिन्न क्षेत्रों एवम् संघटनाओं के कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत बनें। श्रीगुरुजी का जीवन अलौकिक था, राष्ट्रजीवन के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने मूलभुत एवम् क्रियाशील मार्गदर्शन किया। “सचमुच ही श्रीगुरूजी का जीवन ऋषि-समान था।

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

लो श्रद्धांजली राष्ट्र पुरुष , शत कोटी हृदय के कंज खिले है


लो श्रद्धांजली राष्ट्र पुरुष , शत कोटी हृदय के कंज खिले है |

आज तुम्हारी पूजा करने ,सेतु हिमालय संग मिले ||


माँ के पद पद्मों तुमने जो अमूल्य उपहार रखा है |

सत्य चिरंतन अक्षय है , हिन्दू की अमिट रूपरेखा है || 

पावन संस्कारों से निर्मित , तन मन ये अभेद्य किले |

आज तुम्हारी पूजा करने ..........................................

तुमने किया व्यतीत कठिनतम , लोक - प्रसिद्ध - परामुख जीवन |

भीष्म समान रहे तुम अविचल , हिन्दू राष्ट्र के हित जीवन ,

देव ! तुम्हारी घोर  तपस्या के ही  ये सुफल मिले है ||

 आज तुम्हारी पूजा करने ----------------------------------

तुम अजात और लोक संग्रही , संघ शक्ति के वलय कोण थे ,

देव ! बता दो प्रतिपक्षी भी क्यों इतने संतुष्ट मौन थे , 

सुनकर पावन चरित तुम्हारा  कोटी हृदय प्रस्तर पिघले है ||

 आज तुम्हारी पूजा करने ----------------------------------

आज तुम्हारी पार्थिव प्रतिमा चर्म चक्षुओ से अद्रश्य है ,

किन्तु कोटी उर निलयों में तब दिव्य मूर्ति प्रस्थित अखंड है ,

तेजोमय प्रतिबिंब तुम्हारे , स्वयं सिद्ध अगणित निकले है ||

आज तुम्हारी पूजा करने --------------------------------------




सोमवार, 26 दिसंबर 2022

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान हैं

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान हैं | 
इसके वास्ते ये तन हैं , मन हैं , प्राण हैं ||धु||

इसके कण कण में लिखा रामकृष्ण नाम है |
हुतात्माओं के रुधिर में भूमि शस्य श्याम हैं ||
धर्म का ये धाम है , सदा इसे प्रणाम है | 
स्वतंत्र है यह धरा स्वतंत्र आसमान है || 1||

इसकी आन पर अगर बात कोई आ पड़े | 
इसके सामने जुल्म के पहाड़ हो खड़े ||
शत्रु सब जहां हो विरुद्ध आसमान हो |
मुक़ाबला करेंगे जब तक जान में जान हो ||2|| 

इसकी गोद में हजारों गंगा , यमुना झूमती |
इसके पर्वतों की चोटियाँ गगन को चूमती ||
भूमि ये महान है निराली इसकी शान है | 
इसकी जय पताका पर लिखा विजय निशान है ||3|| 

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है |
इसके वास्ते ये तन है , मन है , प्राण है ||

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

परिवर्तन के संवाहक - 1 बाल विवाह निरस्त कराने वाली कृति बनीं बदलाव की वाहक

अब बालिका वधु नहीं - देश में पहली बार बाल विवाह निरस्त कराने का श्रेय मिला राष्ट्रीय स्वयं सिद्ध सम्मान 

 डॉ. कृति भारती के प्रयासों से पहली बार हुआ जब कोई बाल विवाह निरस्त कर दिया गया | राजस्थान में बाल विवाह निरस्त कराने और रोकथाम की मुहिम के लिए सारथी ट्रस्ट की प्रमुख डॉ. कृति को जिंदल फ़ाउंडेशन का राष्ट्रीय स्वयं सिद्ध सम्मान मिला | राजस्थान की जड़ों में घर की हुई बाल विवाह जैसी प्रथा को सामाजिक परिवेश में रहकर बदलने , बाल विवाह को निरस्त करवाने और ऐसे विवाहों पर कारगर लगाम लगाने की अनूठी और उतनी ही साहसिक मुहिम को अब राष्ट्रीय पहचान मिलने लगी है | अन्य राज्यों में भी सारथी ट्रस्ट की इस मुहिम से जुड़कर लोग इस कुरीति को बदलना चाहते है | राजस्थान में किए गये प्रयासों से अन्य को प्रेरणा मिल रही है | सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ कृति भारती पेशे से पुनर्वास मनोवैज्ञानिक हैं | 

परिवर्तन के संवाहक - 1 बाल विवाह निरस्त कराने वाली कृति बनीं बदलाव की वाहक 


बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के आधार पर डॉ कृति ने देश का पहला बाल विवाह निरस्त करवाकर अनूठी पहल की थी | उसी क्रम में आगे बड़ते हुये अनवरत 40 जोड़ों के बाल विवाह निरस्त करवाए और कई अन्य बाल विवाह होने से रुकवाए गए , 32 वर्षीय कृति बताती हैं की बाल विवाह को मिटाने की मुहिम को बड़ाते हुये उन्होने बचपन में बहुत संघर्ष झेले और अब भी अविवाहित हैं | कहती हैं , कई बालिका बधूओं को संरक्षण देकर महज मातृ धर्म का निर्वहन कर रही हूँ | समाज की जकड़ने को तोड़ने का काम आसान नहीं था , जान का जोखिम झेलने के अलावा कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता था | पिता ने मुझे और माँ का परित्याग किया था , जिसके बाद घटित हुये अन्य घटनाओं का बाल मन पर ऐसा असर हुआ की समाज की कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़ी हुई | यहाँ तक कि सरनेम भी त्याग कर भारती कर लिया | 

"ऐसे बनी स्वयंसिद्ध ......................................"

देश में पहली बार बाल विवाह निरस्त कराने की राह खोज निकालने के साथ देश का पहला बाल विवाह निरस्त करवाने को लेकर जोधपुर के सारथी ट्रस्ट का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड और वर्ल्ड रिकॉर्डस इंडिया में शामिल है | वर्ष 2016 में महज तीन दिन में दो बाल विवाह निरस्त करवाने पर इसे युनिक वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया | डॉ कृति भारती को बाल व महिला कल्याण पुनर्वास के क्षेत्र में साहसिक नवाचारों के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानों से नवाजा जा चुका है |

सोमवार, 19 दिसंबर 2022

युगों युगों से दुनिया चलती, जिसके दिव्य प्रकाश में YUGO YUGO SE DUNIYA CHALATI JISKE DIVYA PRAKASH MEN

युगों युगों से दुनिया चलती, जिसके दिव्य प्रकाश में 


 युगों युगों से दुनिया चलती, जिसके दिव्य प्रकाश में |

पुरुखों की वह पौरुष गाथा , अजर अमर इतिहास में ||

भारत के इतिहास में ----------------(1)

अपना बल ही अपना वैभव , कुरुक्षेत्र मैदानों में 

विजय लिखी थी खड़ग नौंक से , शक हुणी तूफानों में 

हार नहीं जय विजय पराक्रम , पुरुखों के पुरुषार्थ में ||

   भारत के इतिहास में -----------------(2)

राज्य सैकड़ो रहा विदेशी , पर अखंड यह परिपाटी 

मिटा मिटाने वाला उसको , तेजोमय इसकी माटी 

अमर - अमिट हिन्दू संस्कृति है , जल थल में आकाश में ||

      भारत के इतिहास में ----------------(3)

भौतिकता से त्रस्त विश्व की , एकमात्र भारत आशा 

परमानंद शांति की जननी , पूर्ण करेगी अभिलाषा 

यत्न संगठित बने मील के , पत्थर विश्व विकास में ||

     भारत के इतिहास में ---------------------(4)

व्यष्टि - समष्टि - सृष्टि जीवन में , कलिमल आहत मर्यादा 

हिन्दू संस्कृति संस्कारों से , दूर करेगी हर बाधा 

पतित पावनी संस्कृति गंगा , जन मन हृदयकाश में ||

भारत के इतिहास में --------------------(5)

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

लक्ष्य शिखर की और अग्रसर भारत का पावन अभियान

                          

 

लक्ष्य शिखर की ओर अग्रसर , भारत का पावन अभियान 

लोकशक्ति के स्वप्नों पर अब , युवा शक्ति भी है गतिमान 

आओ तीव्र करे आह्वान , मिलकर सफल करें अभियान 

आओ तीव्र ..............................................................||


मातृभूमि का भाल सुरक्षित , जागा जनमानस विश्वास 

दानवता से मुक्ति हेतु ये , राष्ट्रभाव के सफल प्रयास 

भस्म करें आतंकवाद को , और तीव्र हो महाप्रयाण 

आओ तीव्र ........................................................||1||


जन्मभूमि प्रभु रामचन्द्र की , मुक्त हुई यह सुख की श्वास 

संस्कृति सूर्योदय पथ उज्जवल , होगा प्रबल जगी जनआस 

कर्म करें हम धर्माधारित , सक्रिय सभी लोक संस्थान |

आओ तीव्र ........................................................||2||


हो अपना हर भारतवासी , नहीं पराया या अंजान 

हम संतति हम भारत माँ की , करें राष्ट्र का हर उत्थान 

राष्ट्र समर्पण समझ हिताहित , कर पायेंगे जनकल्याण 

आओ तीव्र ........................................................||3||


प्रश्न अनेकों कदम निरंतर , एक अखंड राष्ट्र संदेश 

बड़ें परम वैभव के पथ पर , प्रगतिशील अपना परिवेश 

कर्म , ज्ञान और भक्ति धार कर , प्राप्त करें जग में सम्मान 

आओ तीव्र .......................................................॥ 4||


मौत से ठन गयी - अटल बिहारी वाजपेयी जी

  ठन गई ! मौत से ठन गई ! झुझने का कोई इरादा न था ,  मोड पर मिलेगे इसका वादा न था  रास्ता रोक कर वो खड़ी हो गई , यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गयी ...