मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

जो बीत गई सो बीत गई

जो बीत गई सो बात गई! जीवन में एक सितारा था, माना, वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया; अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहाँ मिले; पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है! जो बीत गई सो बात गई! जीवन में वह था एक कुसुम, थे उस पर नित्य निछावर तुम, वह सूख गया तो सूख गया; मधुवन की छाती को देखो, सूखीं कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ जो मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं; पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है; जो बीत गई सो बात गई! जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन-मन दे डाला था, वह टूट गया तो टूट गया; मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, जो गिरते हैं कब उठते हैं; पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है! जो बीत गई सो बात गई! मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, मधुघट फूटा ही करते हैं, लघु जीवन लेकर आए हैं, प्याले टूटा ही करते हैं, फिर भी मदिरालय के अंदर मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं, जो मादकता के मारे हैं, वे मधु लूटा ही करते हैं; वह कच्चा पीने वाला है जिसकी ममता घट-प्यालों पर, जो सच्चे मधु से जला हुआ कब रोता है, चिल्लाता है! जो बीत गई सो बात ग ई! हरिवंश राय बच्चन

kitni mohabbat

Kitni mohabbat h unse, humse btaya na gya.. Wo samjh na sake ya humse smjhaya na gya...Unhone hath thaamne ki koshish na ki or humse hath bhadaya na gya..

मकान सारे कच्चे थे , लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थै !


शनिवार, 9 जनवरी 2016

नीम-:. एक बेहतरीन कुदरती नियामत

कुदरत ने हमारे देश को जो अनेक नियामते दी हैं , उनमें से एक है , ' नीम का वृक्ष' ! गाँव और शहरों में अनेक लोग इसकी टहनियों का प्रयोग दातुन बनाकर दाँत साफ करने में करते है या इसकी पत्तियो का प्रयोग खद्यानों को कीड़ो से बचाने के लिए करते है ! नीम के तेल का इस्तेमाल मुख्यत: साबुन बनाने में किया जाता है ! यह तेल इसके बीजों से निकाला जाता है ! नीम के तेल निकालने के बाद बचा पदार्थ नीम की खली कहलाता है ! जिसके अनेक उपाय है ! गर्मी के मौसम में नीम फलता फूलता है ! इस पर फूल आते हैं आसपास महक उठता है ! इसके बाद फल भी आते हैं , जो अंगूर के दाने के बराबर तनिक लम्बा गोल सक्ल का होता है जिसे ' निबोली ' कहते है ! कच्ची निबोलियां हरे रंग की होती है ! चखने में कड़वी होती है ! पकने पर वह पीले हो जाती है और स्वाद मीठा हो जाता है ! निबोली की गुठली से मींग निकलती है और उसे कोल्हू मे पेल कर तेल निकाला जाता है ! जो नीम का तेल कहलाता है ! नीम के कुछ पेड़ो से ताड़ और खजूर की तरह तनिक मिठास लिए पानी निकलने लगता है ! इसे नीम का मद कहा जाता है ! नीम के कुछ अंग कड़वे होते हैं ! परन्तु नीम चखने में जितना कड़वा है , लाभ की दृष्टि से उतना ही मीठा ! इसके सारे अंग पत्ते , फूल, फल , और छाल दवा के तौर फर इसत्तेमाल होते है ! यहाँ तक की इसकी छाया भी स्वस्थयवर्धक है ! इसी लिए गाँव में लोग इसकी छाया मेम विश्राम करते है ! इसकी दातुन से मुँह की गन्दगी को दूर करना , दाँतो को साफ तथा किड़ो से बचाना है ! नीम के पत्ते खून साफ करते है ! अलग अलग राज्यों इसके अलग नाम है ! हिन्दी में इसे नीम , पंजाबी में निमूरी , गुजराती में मीमड़ो , मद्रासी में कडूनिंम , बंगाली में निम तथा तेलगू में बविना ते है ! आयुर्वेद की दृष्टि से नीम तिक्त , शीत, वीर्य वर्धक और स्वाद विपाक में कड़वा है ! तिक्त होने से - कफ और पित्त का शमन करता है ! सेचन ग्राही (मलभेदन) हमिघ्न और यकृतोत्तेजक है ! तिक्तरस होने के कारण यह रक्त को शुद्ध करता है ! तथा रक्त विकार जन्म शोथ को दूर करता है ! इसके पत्ते एवं छाल जन्तुघ्न , ब्रषापाचन, घाव को शुद्ध करने वाला पूतिहर , दाहप्रशन एवं खुजली नाशक हैं! इसके बीजो का तेल , घाव भरने वाला , कुष्ठ में उपयोगी है ! यह बल को बढ़ाता है ! आयुर्वेद तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में नीम के विविध प्रयोग बताए गए हैं ! घरेलू चिकित्सा में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है !

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

कैसा नववर्ष

हवा लगी पश्चिम की सारे कुप्पा बनकर फूल गए ईस्वी सन तो याद रहा अपना संवत्सर भूल गए चारों तरफ नए साल का ऐसा मचा है हो-हल्ला बेगानी शादी में नाचे ज्यों दीवाना अब्दुल्ला धरती ठिठुर रही सर्दी से घना कुहासा छाया है कैसा ये नववर्ष है जिससे सूरज भी शरमाया है सूनी है पेड़ों की डालें, फूल नहीं हैं उपवन में पर्वत ढके बर्फ से सारे, रंग कहां है जीवन में बाट जोह रही सारी प्रकृति आतुरता से फागुन का जैसे रस्ता देख रही हो सजनी अपने साजन का अभी ना उल्लासित हो इतने आई अभी बहार नहीं हम नववर्ष मनाएंगे, न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं लिए बहारें आँचल में जब चैत्र प्रतिपदा आएगी फूलों का श्रृंगार करके धरती दुल्हन बन जाएगी मौसम बड़ा सुहाना होगा दिल सबके खिल जाएँगे झूमेंगी फसलें खेतों में, हम गीत खुशी के गाएँगे उठो खुद को पहचानो यूँ कबतक सोते रहोगे तुम चिन्ह गुलामी के कंधों पर कबतक ढोते रहोगे तुम अपनी समृद्ध परंपराओं का मिलकर मान बढ़ाएंगे भारतवर्ष के वासी अब अपना नववर्ष मनाएंगे

मौत से ठन गयी - अटल बिहारी वाजपेयी जी

  ठन गई ! मौत से ठन गई ! झुझने का कोई इरादा न था ,  मोड पर मिलेगे इसका वादा न था  रास्ता रोक कर वो खड़ी हो गई , यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गयी ...