सोमवार, 9 मार्च 2020

Swami Vivekananda biography - 1

Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के सिमला क्षेत्र के प्रसिद्ध दत्त परिवार में हुआ था। उसके पिता श्री विश्वनाथ दत्त वकील थे। उन्होंने कई विषयों का अध्ययन किया था एवं सभी उनका समुचित सम्मान करते थे। उनकी पत्नी श्रीमती भुवनेश्वरी देवी थीं। वे दिखने एवं व्यवहार में एक रानी के समान गरिमामयी थीं। सभी उन्हें स्नेह एवं आदर करते थे।

12 जनवरी 1863 ई. को उन्होंने प्रथम पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम रखा गया - नरेन्द्रनाथ।

नरेन बड़ा नटखट बालक था, और कभी - कभी भुवनेश्वरी देवी उसे सम्भालने में असमर्थ हो जाती। परन्तु उन्होंने यह देखा कि जब नरेन्द्र अत्याधिक चंचल हो जाता, तो यदि उसके सिर पर ठण्डा पानी डालते हुए उसके कान में शिव का नाम सुनाया जाए, तो वह एकदम शान्त हो जाया करता । इसीलिए , अनेकों बार उसे नियन्त्रण में लाने के लिए वे इस युक्ति का इस्तेमाल किया करती थीं। 

बालक नरेन्द्र ने अपनी माता से बहुत - सी बातें सीखी थीं, और उनकी माता उसे महाभारत तथा रामायण से अनेकों कहानियाँ सुनाया करती थीं। नरेन्द्र को राम - विषयक कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता था। उसने राम - सीता की मिट्टी की एक युगल - मूर्ति खरीदी और फूलों से उसकी पूजा करनी शुरू कर दी । एक बार वह केले के उद्यान में इस उम्मीद में बहुत समय तक बैठा रहा कि उसे हनुमान जी के दर्शन प्राप्त होंगे क्योंकि उसने कहीं सुन रखा था कि राम के इस वीर भक्त को ऐसा स्थान अत्यन्त प्रिय है। उन्हें ध्यान में मग्न होनेवाला खेल भी प्रिय था। वह अपने दो - एक संगियों को अपने साथ किसी एकान्त स्थान में ले जाता और वे लोग सीता - राम या शिव की मूर्ति के सामने बैठ जाते । तब नरेन्द्र ध्यान करने बैठ जाता और भगवान का चिन्तन करता।

 वह ईश्वर के ध्यान में मग्न हो जाता और उस समय अपने आसपास कुछ भी अनुभव नहीं कर पाता। एक बार एक नाग सरकते हुए वहाँ आ पहुँचा । अन्य बालक भाग खड़े हुए, परन्तु नरेन्द्र वहीं बैठा रहा । उन्होंने बहुत बार उसे पुकारा , परन्तु नरेन्द्र ने कुछ न सुना। कुछ देर बाद नाग वहाँ से चला गया। बाद में जब उसके माता  - पिता ने नरेन्द्र से पूछा कि वह वहाँ क्यों नहीं , तो उसने कहा , ‘‘ मैं नाग के बारे में कुछ भी जान न पाया। मैं तो आनन्द में था।’’ 

जब कोई साधु नरेन्द्र के घर आते तो वह बड़ा प्रसन्न होता था। कभी- कभी तो वह उन्हें किमती चीजें तक दे डालता था। एक बार उसने अपना पहना हुआ नया कपड़ा ही एक साधु को दे दिया। इस घटना के बाद जब भी कोई साधु उनके घर में आता, तो नरेन्द्र को एक कमरे में बन्द कर दिया जाता था। परन्तु यदि नरेन्द्र उस समय किसी साधु को देख पाता तो खिड़की से ही चीजें फेंक दिया करता। कभी - कभी तो वह कह उठता कि किसी दिन वह भी साधु बन जाएगा।

जैसा हमने पहले ही कहा है, नरेन्द्र के पिताजी एक वकील थे । बहुत से लोग उनसे मिलने आया करते थे। वे उन सबका आतिथ्य करते एवं हुक्का पीने के लिए दिया करते । बैठकखाने में विभिन्न जाति के लोगों के लिए अलग - अलग हुक्कों की व्यवस्था थी। परन्तु जातिभेद नरेन्द्र के लिए एक बड़ा रहस्य था। क्यों एक जाति के सदस्य को अन्य जाति नरेन्द्र के लिए एक बड़ा रहस्य था। क्यों एक जाति के सदस्य को अन्य जाति के सदस्यों के साथ भोजन करने नहीं दिया जाता ? क्यों विभिन्न जातियों के लिए अलग - अलग हुक्कों की व्यवस्था की गई थी।

 क्या होगा यदि वह सभी हुक्कों से धुम्रपान करे? क्या कोई धमाका होगा? या छत नीचे गिर पड़ेगी? नरेन्द्र ने स्वयं ही इसका पता लगाने कि निश्चय किया। उसने एक हुक्के से एक कश लगाया। कुछ भी तो नहीं हुआ। इस प्रकार एक के बाद एक सभी हुक्कों से कश लगाया। फिर भी नहीं हुआ। उसी वक्त उसके पिताजी ने उस कक्ष में प्रवेश किया और पूछा कि वह क्या कर रहा है। नरेन ने उत्तर दिया , ‘‘ पिताजी मैं देख रहा था कि यदि मैंने इस तरह जाति तोड़ी, तो आखिर होगा क्या? ’’ उसके पिताजी ने एक ठहाका लगाया और अपने अध्ययन कक्ष में चले गए।
Swami Vivekananda biography

जब नरेन्द्र छह वर्ष का हुआ तो उसका पढ़ना शुरू हुआ पहले - पहल वह पाठशाला में नहीं गया था क्योंकि उसके पिताजी ने उसके लिए एक शिक्षक नियुक्त कर दिया था। जब सात वर्ष का हुआ तो उसे मेट्रोपोलिटन संस्था में दाखिल करवाया गया। इस संस्था के संस्थापक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे। नरेन्द्र नाथ एक अत्यन्त मेधावी छात्र था और अकस्मात् ही पाठ को याद कर लिया करता था। वह बालकों का नेता बन गया। खेल में उसकी बहुत रूचि थी। दोपहर भोजन समाप्त कर वह सबसे पहले खेल के मैदान में पहुँच जाता । कूदना , दौड़ना , मुक्केबाजी तथा काँच की गोलियों से खेलना आदि में उसकी विशेष रूचि थी। वह कुछ खेलों का आविष्कार भी कर लिया करता था। 

नरेन को पशुओं से भी बड़ी प्रीति थी तथा वह घर की गाय से भी खेला करता । उसने कुछ पालतू जानवर और पंक्षियों को भी पाल रखा था। इनमें एक - एक बन्दर , बकरी और मोर , कुछ कबूतर तथा दो या तीन गिनी - पिग थे। 
Swami Vivekananda

जैसे - जैसे नरेन्द्र बड़ा होने लगा वह खेलने के बजाय पुस्तकें पढ़ने में अधिक रूचि लेने लगा। एक वर्ष के लिए वह प्रेसिडेन्सी काॅलेज में पढ़ने  के लिए दाखिल हुआ, उसके दूसरे वर्ष वह जनरल असेम्बली की संस्था में दाखिल हुआ, जिसे आजकल स्काॅटिश चर्च काॅलेज कहा जाता है। इस काॅलेज के अध्यापकगण नरेन्द्र की बुद्धिमत्ता देखकर चमत्कृत हो जाते थे। प्रधानाध्यापक श्री विलियम हेस्टी ने कहा था कि नरेन के समान प्रतिभाशाली छात्र उन्होंने आज तक नहीं देखा । नरेन बहुत पढ़ाई करता था तथा विभिन्न विषयों पर अनेकों पुस्तकें पढ़ा करता था। उसने 1881 ई. में बी.ए. (प्रथम) की परीक्षा उत्तीर्ण कर 1884 ई. में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।

नरेन्द्र ने चार या पाँच वर्षों तक संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की थी। उसने अनेक प्रकार के वाद्य - यन्त्रों को बजाना भी सीख लिया था तथा एक उत्कृष्ट गायक के रूप में उसकी ख्याति भी हुई थी।

इसी समय नरेन धर्म - विषयक समस्याओं में विशेष रूचि लेने लगे। अन्य नवयुवकों की भाँति नरेन्द्र भी ब्रह्मसमाज का सदस्य बन गया तथा श्री केशवचन्द्र सेन की वकृताओं को सुनने लगा। परन्तु एक प्रश्न उसे सदा कष्ट पहुँचाता कि ईश्वर का कोई अस्तित्व भी है या नहीं अथवा क्या किसी ने आज तक उसे देखा भी है। इस प्रश्न के उचित समाधान हेतु वह अनेक धार्मिक नेताओं के समक्ष गया जिसमें श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर भी थे। परन्तु कोई भी उसकी शंकाओं का समाधान नहीं कर सका।

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