जिस दिन हम पैदा हुए उस घर परिवार में हर तरफ खुशी का माहौल और मां पिता जी के लिए एक नया एहसास और खुशी जिसे शायद बयां करने के शब्द भी उनके पास ना हो. वही हो जाता है हमारा जन्मदिन उस दिन को जन्मदिन के रूप हर साल आनन्द करते है। लेकिन आज कल युवा उस दिन अपने मां पिता का आर्षीवाद लेने के बजाय माॅडर्न दिखने के चक्कर में ढ़ोग करते फिरते है , लेकिन इस सब के पीछे माता पिता भी जिम्मेदार हैं क्यूँकि वह अपने बच्चे बालपन से ही उस अपने संस्कारों की बजाय अंग्रेजियत लाद देते है.
इस धरती पर अवतरण के उस दिन को जन्मदिन के रूप में मनाते है और जन्मदिन की उस खुशी में हम पाश्चात्य सभ्यता के चकाचैंध में खो जाते है
जिस दिन मेरा जन्मदिन होता था मां सुबह ही पैर छूकर बड़ो का आशीर्वाद लेने को कहती , वैसे तो मेरे परिवार सभी जल्दी जागना, अपने से बड़ो को प्रणाम करना यह सभी कार्य एक नियमितता से होते है , लेकिन जिस दिन मेरा जन्मदिन होता था वो दिन कुछ खास हो जाता है।
सुबह जगकर बड़ो का आशीर्वाद लेने के बाद नित्य क्रिया स्नानादि से निवृत होकर मां पिता के साथ मन्दिर जाकर पूजा अर्चना करता उसके बाद कुछ दान करना और फिर मां और दादी ,बहन , बुआ आदि मेरा तिलक करती और घर में दीप जलाकर उस सर्वशक्तिशाली ईश्वर का धन्यवाद और मेरे उज्जवल भविष्य की कामना करते थे। यह एक बहुत सुन्दर एहसास होता था।
हमारी इस पद्धति को बहुत से लोग पिछड़ापन के कहते लेकिन हमें क्या फर्क पडना था। जन्मदिन के दिन दान देने के संस्कार ने मेरे अन्दर असहायांे की मदद की जो भावना उत्पन्न की वो मुझे हमेशा सुकून देती है।
लेकिन आजकल के माहौल जन्मदिन की पार्टी के नाम पर हजारों रूपये उड़ा देते , नयेपन के नाम पर शराब , सिगरेट जैसे अन्य नशों का सेवन करते है। और फिर चरित्र का पतन करते है । और फिर कहते है हम तो विकसित हो गये।
एक बार की एक घटना जो मेरे सामने घटी की एक लडकी को 4 लड़के जबरदस्ती गाड़ी में बिठा रहे थे तो इस घटना को देखने वालों कुछ लोगो ने पुलिस को सूचना करदी जब पुलिस उस स्थान पर पहुंची और उन लोगो को गिरफ्तार करने लगी तो उनमें एक लड़के बताया कि यह हमारी दोस्त है और मेरे जन्मदिन की पार्टी थी और इसने उस चक्कर में शराब ज्यादा पी ली और अब गाड़ी में बैठने से मना कर रही थी तो हम इस बिठा रहे थे, पुलिस उन सभी के मां पिता जी को सूचना कर बुलवाया।
लेकिन सोचिए ? ये कैसा जन्मदिन की खुशी मनाना है जब मां बाप थाने में अपने बच्चों को देखा होगा तो क्या सोचा होगा , कितनी शर्मिन्दगी उठायी होगी । लेकिन आज युवा पीढ़ी विकास के पथ पर चलने की अपेक्षा विनास के राह अपना रही है।
इसलिए मैं यह सोचता हूँ कि अपने जन्मदिन पर हमें अपनी भारतीय पद्धति से जन्मदिन मनाना चाहिए ।
हम सभी को अपना जन्मदिन मनाने का बड़ा शौक होता है और उनमें उस दिन बड़ा उत्साह होता है लेकिन अपनी परतंत्र मानसिकता के कारण हम उस दिन भी अपने और अपने बच्चे के दिमाग पर अंग्रेजियत की छाप छोड़कर अपने साथ, उसके साथ व देश तथा संस्कृति के साथ बड़ा अन्याय कर रहे है।
जन्मदिन पर हम ‘ केक ’ बनवाते है तथा जन्म को जितने वर्ष हुए हों उतनी मोमबत्तियाँ ‘केक’ पर लगवाते है। उनको जलाकर फिर फूँक मारकर बुझा देते हैं।
जरा विचार तो कीजिये कि हम कैसी उल्टी गंगा बहा रहे है ! जहाँ दीये जलने चाहिए वहाँ बुझा रहे हैं! जहाँ शुद्ध चीज खानी चाहिए वहाँ फँूक मारकर उड़े हुए थूक से जूठे हुए ‘केक’ को हम बड़े चाव से खाते हैं! जहाँ हमें गरीबी को अन्न खिलाना चाहिए वहीं हम बड़ी पार्टियों का आयोजन कर व्यर्थ पैसा उड़ा रहे हैं!
कैसा विचित्र है आज का हमारा समाज ?
हमें चाहिए कि हम बच्चों को उनके जन्मदिन पर भारतीय संस्कार व पद्धति के अनुसार ही कार्य करना सिखायें ताकि इन मासूमों को हम अंग्रेज न बनाकर सम्माननीय भारतीय नागरिक बनायें।
मान लो, किसी बच्चों का 11वाँ जन्मदिन है तो थोड़े से अक्षत (चावल) लेकर उन्हें हल्दी, कुमकुम , गुलाल , सिंदूर आदि मांगलिक द्रव्यों से रंग लें और उनसे स्वास्तिक बना लें । उस स्वास्तिक पर 11 छोटे छोटे दीये रख दें और 12 वें वर्ष की शुरूआत के प्रतीकरूप एक बड़ा दीया रख दें। फिर घर के बड़े सदस्यों से सब दीये जलवायें तथा बच्चा बड़ों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद ग्रहण करे।
- पार्टियों में फालतू का खर्च करने के बजाय अपने और बच्चों के हाथों से गरीबों में , अनाथालयों में भोजन , वस्त्र इत्यादि का वितरण करवाकर अपने धन को सत्कर्म में लगाने के सुसंस्कार दृढ़ करें।
- लोगों के पास से चीज वस्तुएँ लेने के बजाय हम अपने बच्चों को दान करना सिखायें ताकि उनमें लेने की वृत्ति नहीं अपितु देने की वृत्ति को बल मिले।
- हमें उस दिन नये कार्य करवाकर उनमें देशहित की भावना का संचार करना चाहिए । जैसे - पेड़ - पौधे लगाना इत्यादि।
- हमको इस दिन अपने गत वर्ष का हिसाब करना चाहिए यानी कि हमंने वर्षभर में क्या क्या अच्छे काम किये? क्या-क्या बुरे काम किये? जो अच्छे कार्य किये उन्हें भगवान के चरणों में अर्पण करना चाहिए और जो बुरे कार्य हुए उनको भूलकर आगे उन्हें न दोहराने व सन्मार्ग पर चलने का संकल्प करना चाहिए।
- अपने बच्चों से संकल्प करवाना चाहिए कि वे नये वर्ष में पढ़ाई, साधना , सत्कर्म , सच्चाई तथा ईमानदारी में आगे बढ़कर अपने माता-पिता व देश के गौरव को बढ़ायेंगे।
उपरोक्त सिद्धांतो के अनुसार अगर हम कदाचित् उन्हें भौतिक रूप से भले ही कुछ न दे पायें लेकिन इन संस्कारों से ही हम उन्हें भौतिक रूप से भले ही ऐसे महकते फूल बना सकते हैं कि अपनी सुवास से वे केवल अपना घर , पड़ोस , शहर , राज्य व देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सुवासित कर सकेंगे।
उम्मीद करता हूँ कि आपको यह लेख अवश्य पसंद आया होगा
और आपसे एक विनती भी करता हूँ कि खुद माॅडर्न दिखाने के चक्कर खुद को बर्बाद मत करें। जिस भारतीय सभ्यता को विदेशी अपना रहे है हम उन्हीं से दूर जा रहे है।
अपनी संस्कृति अपनी पहचान
कितनी सुन्दर है अपनी भारतीय संस्कृति उस पर गर्व करें।
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